Maize New Vaierty: बिहार विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई मक्के की नई किस्म, खरीफ में होगी भरपूर पैदावार

पटना। बिहार में सबसे ज्यादा मक्का का उत्पादन होता है लेकिन खरीफ सीजन में मक्का उत्पादन में बिहार में कम हो जाता है। इसकी मुख्य वजह यह होती है कि खरीफ सीजन के लिए मक्का के बीज का कोई बेहतर किस्म ही नहीं है। जो बाहरी बीज बाजार में उपलब्ध हैं उससे खेती करने पर […]

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Maize New Vaierty: बिहार विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई मक्के की नई किस्म, खरीफ में होगी भरपूर पैदावार

Pooja Pal

  • June 21, 2024 12:36 pm IST, Updated 5 months ago

पटना। बिहार में सबसे ज्यादा मक्का का उत्पादन होता है लेकिन खरीफ सीजन में मक्का उत्पादन में बिहार में कम हो जाता है। इसकी मुख्य वजह यह होती है कि खरीफ सीजन के लिए मक्का के बीज का कोई बेहतर किस्म ही नहीं है। जो बाहरी बीज बाजार में उपलब्ध हैं उससे खेती करने पर वर्षा के मौसम में कई तरह की बीमारी लग जाती है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब खरीफ के सीजन में मक्का का उत्पादन किया जा सकता है।

खरीफ के लिए मक्के कि नई किस्म विकसित की गई

बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भागलपुर में दो दिवसीय 27वीं खरीफ अनुसंधान परिषद की बैठक वीरवार को पूरी हो गई। बैठक के दौरान खरीफ मक्का की नई किस्म को रिलीज किया गया।वहीं, किसानों के लिए उपयोगी दो नई तकनीक भी जारी की गई है। धान की नई किस्म को फिलहाल अनुसंधान परिषद की स्वीकृति नहीं मिली। बैठक की अध्यक्षता कुलपति डॉ. डीआर सिंह द्वारा की गई। बिहार में सबसे ज्यादा मक्का का उत्पादन होता है। लेकिन खरीफ के सीजन में मक्का के उत्पादन में कमी आती है, क्योंकि इस मौसम में फसलों को कई बीमारियां लग जाती है। यही कारण है कि किसान चाह कर भी इस मौसम में मक्का की खेती नहीं कर पाते हैं। इसको ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने बीते कई वर्षों के प्रयास से खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त मक्का की एक नयी किस्म सबौर मक्का -1 विकसित किया है। जो बिहार के किसानों के लिए लाभकारी होगा।

नई किस्म मक्के की खासियत

विज्ञानी एसएस मंडल ने विशेषज्ञों के सामने बताया कि नयी किस्म का सबौर मक्का-1 मध्यम अवधि (92 दिन) में तैयारी होने वाला पहला प्रभेद है। अधिक उपज देने वाली संकर प्रभेद की उपज प्रति क्विंटल 72.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जो कि खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त है। इसके बीज का रंग पीला, बोल्ड और चमकीला होता है। भुट्टे का आकार 22 सेंटीमीटर लंबा होता है। इसका पौधा गिरता नहीं है। अच्छी स्टैंड क्षमता है। पकने पर भुट्टा का कैप भूरा रंग का हो जाता है। पौधा हरा रहता है, जो बेहतर चारे की गुणवत्ता देता है। इसमें जल्दी से रोग और कीड़े नहीं लगते है। ज्यादा गर्मी में भी इसका उत्पादन किया जा सकता है।

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