पटना। लीची के छिलके और बीज अब उपयोगी साबित होने वाले हैं। इसके के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र शोध में जुट गया है। अनुसंधान केंद्र के एक विज्ञानी को प्रशिक्षण के लिए IIT खड़गपुर भेजा गया है।
IIT खड़गपुर में शोध जारी
आने वाले समय में लीची के छिलके और बीज का उपयोग किया जा सकेगा। बता दे, इसके लिए शोध जारी है। विज्ञानी तीन माह की ट्रेनिंग के दौरान यह जानने की कोशिश करेंगे कि लीची के केमिकल को पता लगाकार उसे कैसे स्टोर करें। छिलके व बीज का प्रसंस्करण कैसे किया जाए। लीची का फल खाने के बाद छिलका व बीज का कोई खास उपयोग अब तक नहीं होता है।
किसान होंगे मालामाल
अगर शोध सफल हो जाता है तो जो किसान लीची की खेती करते है वह मालामाल हो सकते हैं। लीची से दवाई बनाने के लिए रिसर्ज तेजी से जारी है। बिहार के साथ साथ अन्य राज्यों में भी इसकी डिमांड बढ़ सकती है।
गुठली पर राजेन्द्र विश्वविद्यालय ने किया शोध
डायरेक्टर डा.दास ने बताया कि ढोली स्थित मात्स्यिकी महाविद्यालय में लीची की गुठली से तैयार होने वाले मछली दाने पर शोध हुआ है। दाना उत्पादन तकनीकी और मछलियों को मिलने वाली पौष्टिकता पर डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, पूसा की मुहर लग चुकी है। उन्होंने आगे बताया कि वहां से रिपोर्ट लेने के बाद आगे किस तरह से किसानों व उद्यमियों से जोड़ा जाए इस पर काम किया जाएगा। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. विकास दास ने कहा कि बीज व छिलका पर शोध के बाद यह पता लगाया जाएगा कि इसमें कौन सा केमिकल है। उसके बाद यह तय किया जाएगा कि क्या-क्या बन सकता है।