पटना। बिहार में जाति आधारित जनगणना कुछ महीने पहले ही हुई है। ऐसे में राज्य में मंगलवार (07 नवंबर) की शाम आरक्षण का दायरा बढ़ाने पर नीतीश कुमार की कैबिनेट ने मुहर लगा दी. 75 फीसदी आरक्षण लागू करने का प्रस्ताव राज्य में कैबिनेट से पास हो गया है। बता दें कि नीतीश सरकार ने निर्णय लिया है कि बिहार विधानसभा में उनकी सरकार 9 नवंबर को आरक्षण बढ़ाने का बिल लाएगी. वहीं दूसरी तरफ नीतीश सरकार के इस फैसले को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बड़े दांव की तरह बताया जा रहा है। दरअसल, विधानसभा में मंगलवार (07 नवंबर) को ही CM नीतीश ने आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया था. बिहार कैबिनेट की बैठक इस प्रस्ताव के कुछ पलों के बाद हुई है और इस फैसले पर मुहर भी लगाया गया है।
जानिए क्या है आरक्षण बढ़ाने का गणित?
अनुसूचित जाति को पहले से मिल रहे 16 फीसदी के बजाय 20 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव नीतीश कुमार की कैबिनेट ने पास किया है. पहले से मिल रहे अनुसूचित जनजाति को एक फीसदी आरक्षण के बजाय दो फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव पास किया गया है. 25 फीसदी अति पिछड़े को, 18 फीसदी ओबीसी को और 10 फीसदी का आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े यानि EWS वर्ग को दिया जाएगा. इस तरह आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75 फीसदी करने का फैसला लिया गया है। जातिगत जनगणना के अनुसार, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, उपसमूह सहित ओबीसी, बिहार की कुल आबादी का 63 प्रतिशत है। वहीं SC और ST कुल मिलाकर 21 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा हैं.
चर्चा में क्यों है जाति आधारित जनगणना?
हाल ही में बिहार सरकार ने एलान किया है कि बिहार सरकार सभी जातियों और समुदायों का सामाजिक और आर्थिक जनगणना करेगी। और पिछले दिन सरकार ने ऐसा कर दिखाया है। इस जनगणना के तहत ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में भारतीय परिवारों की आर्थिक हालात के बारे में जानकारी एकत्र किया जाता है। इस गणना के माध्यम से विभिन्न जाति और समूहों की आर्थिक स्थितियों का जानकारी हासिल करने के लिए विशिष्ट जाति नामों पर डेटा भी इकट्ठा करते है।