Sunday, September 8, 2024

Chhath Puja: सर्वप्रथम माता सीता ने मुंगेर में की थी छठ पूजा, जानिए क्या हैं मान्यताएं

पटना। देश भर में लोकआस्था के महापर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान की शुरुआत हो चुकी है। जहां एक तरफ इस पर्व का पौराणिक महत्व है वहीं, यह पर्व स्वच्छता, सादगी और पवित्रता का भी सूचक है। बताया जाता है कि धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता ने सर्वप्रथम पहली छठ पूजा बिहार के मुंगेर में गंगा के तट पर की थी, जिसके बाद महापर्व छठ की शुरुआत हुई थी। बता दें कि छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है। यही नहीं बिहार के साथ-साथ यह पर्व देश के अन्य राज्यों में भी बड़ी धूम-धाम के साथ मनाते हैं।

यहां मौजूद हैं माता सीता के पद चिन्ह

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बिहार के मुंगेर में छठ पर्व का बड़ा ही विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि माता सीता राम जी के साथ वनवास के लिए गई थी, उस समय उन्होंने बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर सर्वप्रथम छठ पूजा की थी। यहीं से इस लोक आस्था के महापर्व की शुरुआत हो गई थी। बताया जाता है कि आज भी प्रमाण स्वरूप माता सीता के चरण चिन्ह यहां पर मौजूद है। यह चिन्ह एक विशाल पत्थर पर अंकित है। आज इस स्थान पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कर दिया गया है।

जानिए छठ से जुड़ी पौराणिक कथा

छठ से जुड़ी एक विशेष कथा भी है। कहा जाता है कि वाल्मीकि और आनंद रामायण के अनुसार ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिन तक रहकर छठ पूजा पाठ किया था। कहते हैं कि जब भगवान श्री राम 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध से पाप मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। जिसके लिए मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया गया था, लेकिन मुद्गल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। इसके बाद मुद्गल ऋषि ने माता सीता को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी।

सीताचरण मंदिर के नाम से विख्यात

यहां मुद्गल ऋषि की सलाह पर माता सीता ने व्रत रखा। मुद्गल ऋषि के आदेश पर भगवान राम और माता सीता पहली बार मुंगेर आए थे। यहां आने पर ऋषि के आदेश पर माता सीता ने कार्तिक की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य देव की उपासना करते हुए मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चमी तट पर छठ का व्रत किया। जिस स्थान पर माता ने व्रत किया था उसी स्थान पर उनका का एक विशाल चरण चिन्ह आज भी मौजूद है। इसके अलावा शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटा के भी निशान मिलते हैं। यह माना जाता है कि मंदिर का गर्भ गृह साल में छह महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है। वहीं जलस्तर घटने पर छह महीने यह ऊपर रहता है। यह मंदिर सीताचरण मंदिर के नाम से विख्यात है। माता सीता के पद चिन्ह के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं।

गंगा के बीचों-बीच स्थित है सीताचरण मंदिर

इस स्थान पर पूजा-पाठ करने वाली महिलाओं व ग्रामीणों ने का कहना है कि यहां माता सीता के पद चिन्ह के साथ-साथ सूप, नारियल, कलश आदि की आकृतियां भी पत्थरों पर मौजूद हैं। गांव वालों का कहना है कि यहां माता सीता ने पहली बार छठ व्रत किया था जिसके बाद से इस महापर्व को हर जगह मनाया जाने लगा। यही नहीं ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इस मंदिर के अंदर बने चिन्ह छह महीने तक पानी में डूबे रहते हैं, जबकि पानी घटने के बाद इसकी साफ-सफाई की जाती है जिसके बाद ही चिन्ह के दर्शन हो पाते हैं।

विकास कार्य में कमी

गांव वालों ने यह भी बताया कि इतनी बड़ी धरोहर होने के बावजूद इस मंदिर से संबंधित कोई विकास का कार्य नहीं किया जा रहा, जबकि सरकार और जिला प्रशासन को इसे पर्यटन स्थल के रूप में घोषित कर देना चाहिए। ग्रामीणों ने यह भी कहा कि यह मंदिर गंगा के बीचों-बीच स्थित है। इस कारण यहां आना थोड़ा कठिन है, लेकिन जब छठ पर्व शुरु होता है तब हमलोग यहां आते हैं और यहां माता सीता के चरण की पूजा-अर्चना करने के उपरांत महापर्व छठ की शुरुआत की जाती है।

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