पटना। बिहार में जातिगत जनगणना पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 14 अगस्त को की जायेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 80 प्रतिशत काम हो गया है तो 90 प्रतिशत भी हो जायेगा तो क्या फर्क पड़ेगा। इसमें तत्काल रोक की क्या जरुरत है?
तत्काल रोक की जरुरत नहीं
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट यह फैसला पटना हाईकोर्ट के बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को मंजूरी दिये जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवायी करते हुए सुनाया है। पटना हाई कोर्ट ने बिहार में जातिगत जनगणना पर लगी रोक हटा दी है। जिसके बाद याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए सर्वे के आदेश पर रोक लगाने की मांग की।
जानिए अब तक क्या-क्या हुआ
बता दें कि बिहार में 7 जनवरी से जातिगत जनगणना की शुरुआत हुई थी। 15 अप्रैल से दूसरे चरण की शुरुआत हुई थी। 21 अप्रैल को मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा जहां एससी ने हाईकोर्ट जाने को कहा। 2 और 3 मई को सुनवाई के बाद इस मामले में पटना उच्च न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इसके बाद हाईकोर्ट ने 4 मई को गणना पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने 3 जुलाई को सुनवाई की अगली तारीख रखी। जिसमें बिहार सरकार की तरफ से जल्द सुनवाई की अपील की गयी। हाई कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इंकार कर दिया।
पहले भी हुई थी जातिगत गणना
11 मई को बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया। 19 मई को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को हाईकोर्ट जाने को कहा। 3 और 4 जुलाई को हाई कोर्ट में बहस हुई, जिसमें फैसला सुरक्षित रख लिया गया और आज सारी याचिकाएं खारिज करते हुए जनगणना कराने की मंजूरी दे दी गयी है। बता दें कि देश में सबसे पहले जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी। 1941 में इसका डेटा एकत्रित कर लिया गया था लेकिन इसे सार्वजानिक नहीं किया गया।