पटना : बिहार में अब सौतेले संतान को भी माता-पिता का आश्रित माना जाएगा। इसके साथ-साथ नाबालिग भाई-बहनों को भी आश्रित की सूची में शामिल किया गया है। बिहार की नीतीश सरकार ने मेडिकल रिइम्बर्समेंट में आ रही दिक्कतों को देखते हुए कानून में बदलाव करने का फैसला लिया है। इस मामले को लेकर मेडिकल रिइम्बर्समेंट में कई मामले फंसे हुए हैं। ऐसे में बिहार सरकार ने आश्रितों के लिए नए तरीकें से इसकी परिभाषा तैयार की है। इस संबंध में पहले भी एक प्रस्ताव प्रदेश मंत्रालय के समक्ष रखा जा चुका है, जिसे कैबिनेट ने हरी झंडी दिखाई थी।
नई परिभासा को दी मान्यता
बता दें कि राज्य मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने चिकित्सा प्रतिपूर्ति को लेकर आश्रितों की परिभाषा जारी कर दी है. कैबिनेट की मंजूरी के बाद स्वास्थ्य विभाग ने स्पष्ट किया है कि आश्रितों की श्रेणी में सौतेले बेटे-बेटियों के अलावा नाबालिग भाई भी शामिल हैं. विधानसभा सदस्यों, राज्य सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों के आश्रितों को चिकित्सा प्रतिपूर्ति इसी आधार पर की जाएगी।
जानें क्या है परिभाषा?
स्वास्थ्य विभाग ने आश्रितों को लेकर संकल्प जारी किया है, जिसमें आश्रितों की परिभाषा और उम्र सीमा निर्धारित की गयी है. उनके बेटे को चिकित्सा प्रतिपूर्ति का लाभ तब तक मिलेगा जब तक कि उसकी शादी नहीं हो जाती या वह 25 वर्ष का नहीं हो जाता। ऐसे कर्मचारियों की बेटी के संबंध में, आयु सीमा के बावजूद, उसे तब तक आश्रित माना जाता है जब तक वह अपनी जीविका अर्जित करना शुरू नहीं कर देती या शादी नहीं कर लेती।
इस स्थिति में भी होगा मान्य
नई परिभाषा के तहत, यदि बेटा या बेटी विकलांग हो जाता है, तो उसे आयु सीमा और वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना आश्रित माना जाएगा। तलाकशुदा, विधवा बेटी को भी आयु सीमा की परवाह किए बिना आश्रित माना जाएगा।