पटना। बिहार सरकार NTCA को फिर से कैमूर वन्यजीव अभयारण्य का प्रस्ताव भेजने जा रही है। इस बार अभयारण्य को मान्यता मिलने की संभावना की जा रही है। इसके लिए 450 वर्ग किलोमीटर जंगल को चिन्हित किया गया है। बाघों के 450 वर्ग किलोमीटर जंगल प्रदेश के पश्चिमी चंपारण वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के बाद अब […]
पटना। बिहार सरकार NTCA को फिर से कैमूर वन्यजीव अभयारण्य का प्रस्ताव भेजने जा रही है। इस बार अभयारण्य को मान्यता मिलने की संभावना की जा रही है। इसके लिए 450 वर्ग किलोमीटर जंगल को चिन्हित किया गया है।
प्रदेश के पश्चिमी चंपारण वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के बाद अब कैमूर वन्यजीव अभयारण्य बनने का रास्ता साफ होता दिख रहा है। बतादें कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण यानी NTCA की कुछ आपत्तियों के बाद बिहार सरकार फिर से ये प्रस्ताव भेजने की तैयारी कर रही है और अगर सब कुछ सही रहा तो इसी साल के अंत में इस अभयारण्य को मान्यता भी मिल जाएगी। इस अभयारण्य के अंतर्गत बाघों के रहने के लिए 450 वर्ग किलोमीटर जंगल को चुना गया है। वहीं इससे पहले 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चिह्नित किया गया था। इसके साथ ही यहां 1,050 वर्ग किमी में बफर जोन भी बनाया जाएगा।
कैमूर के वन क्षेत्रों में भालू, तेंदुआ, हिरण सहित कई जानवरों की मौजूदगी बताई जाती है। यहीं नहीं यहां विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षी भी देखने को मिलते हैं। कैमूर वन क्षेत्र इतना बड़ा है की इसकी सीमा झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के जंगलों से मिलती है। ऐसे में यहां टाइगर रिजर्व जुड़े होने से बाघों का आना-जाना लगा रहता है।
बताया जा रहा है कि कैमूर अभयारण्य से यूपी के सोनभद्र और मिर्जापुर होते हुए मध्य प्रदेश तक करीब 450 वर्ग किमी लंबा कॉरिडोर है। यहां झारखंड के दक्षिण में पलामू टाइगर रिजर्व और गढ़वा जंगल हैं। यहां यह भी बताया जाता है कि इस क्षेत्र में 1990 के मध्य में बाघ के आशियाने थे, लेकिन उसके बाद ये आशियानें छीन लिए गए जिसके बाद 2016-17 के बीच बाघ फिर से नजर आने लगे। वहीं मार्च 2020 में एक नर बाघ को कैमरा ट्रैप में देखा गया था। बता दें कि बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व बिहार का एकमात्र बाघ अभ्यारण्य है। बता दें कि 800 वर्ग किमी से भी अधिक क्षेत्र में फैले इस रिजर्व में पेड़-पौधों की लगभग सैकड़ों प्रजातियां मौजूद हैं। यहां जंगली जानवरों की 60, पक्षियों की 300 और रेप्टाइल्स की 30 प्रजातियां देखी जा सकती हैं।