पटना: महात्मा गांधी का बिहार से बेहद खास लगाव था. वह कई बार पटना आये थे. यहां तक कि उन्होंने इस राज्य के किसानों को अपना गुरु भी बना लिया. महात्मा गांधी का बिहार की राजधानी से गहरा नाता था. वह यहां चालीस दिन तक रुके थे। इस दौरान उन्होंने कई गोपनीय बैठकों में हिस्सा भी लिया.
जन्म भले ही गुजरात लेकिन बिहार से अलग ही लगाव
बता दें कि भले ही बापू का जन्म गुजरात में हुआ था. लेकिन, बिहार से उनका गहरा नाता रहा. चंपारण सत्याग्रह, बिहार विद्यापीठ की स्थापना व आजादी के ऐलान के बाद बिहार में हुए कई दंगों आदि को लेकर गांधी जी लगातार पटना आते रहे। इस दौरान वो कई दिनों तक पटना में रहे। वर्ष 1947 में बापू यहां करीब 40 दिनों तक रुके थे।
1917 में पहली बार पटना पहुंचे थे बापू
मालूम हो कि पंडित राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर महात्मा गांधी चंपारण के किसानों को मदद का वादा करने के लिए 10 अप्रैल 1917 को पहली बार पटना पहुंचे। इधर, 3 जून 1917 को पीरबहोर के दरभंगा हाउस में एक गुप्त बैठक में बापू ने हिस्सा लिया. इस बैठक में मौलाना मजहरूल हक, मदन मोहन मालवीय, हथुआ के महाराजा बहादुर राय, एक्सप्रेस मैनेजर कृष्णा प्रसाद, दरभंगा महाराज के उप सचिव, बहादुर कृष्ण शाही, मोहम्मद मूसा, यूसुफ, राम गोपाल चौधरी शामिल हुए.
7 जून को पत्नी संग लौट आए पटना
दरभंगा हाउस में बैठक करने के बाद बापू 7 जून 1917 को कस्तूरबा के साथ रांची से पटना लौट आए। चंपारण आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी को मुंबई जाना पड़ा। इसके लिए बापू मोतिहारी से पटना पहुंचे थे. 31 जनवरी को उन्होंने मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ी. इसके बाद वह 19 मई को लौटे और फिर मोतिहारी के लिए रवाना हो गये. 24 मई को ही बापू फिर पटना आए और वहां से बड़ौदा के लिए निकल गए ।
गांधी ने पंडित राजकुमार शुक्ल को माना था गुरु
बता दें कि चंपारण आंदोलन के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के परिदृश्य में बदलाव आया। इसके बाद पूरे देश में महात्मा गांधी का प्रभाव बढ़ गया। गांधी जी ने इस ओर सबका ध्यान आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुरली भरहवा गांव पश्चिम चंपारण जिले में पंडई नदी के तट पर स्थित है। यहां के किसान पंडित राजकुमार शुक्ल ने अंग्रेजों को भगाने की ठान ली थी। उनकी जिद के कारण ही महात्मा गांधी को गुजरात से बिहार आना पड़ा था.
चंपारण आंदोलन से आजादी की लड़ाई शुरू
चंपारण आंदोलन देश के स्वतंत्रता संग्राम का एक मजबूत प्रतीक बनकर उभरा था। गांधीजी ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़कर देश को आजाद कराया, राजकुमार शुक्ल ने देश और समाज का भला किया। इसी जिद के कारण गांधी जी ने उन्हें अपना ‘तीसरा गुरु’ माना।
15 अप्रैल 1971 को चंपारण पहुंचे गांधी
मालूम हो कि 15 अप्रैल 1971 को महात्मा गांधी चंपारण आए थे। वे यहां नील कोठी में अंग्रेजों द्वारा किसानों और मजदूरों पर किए जा रहे अत्याचार को देखने और समझने आए थे, लेकिन तत्कालीन डीएम ने उन्हें तत्काल जिला छोड़ने को कहा था. महात्मा गांधी ने अपनी आत्मा की आवाज सुनकर सरकारी आदेशों की अवहेलना की। यह भारत में सत्याग्रह का पहला प्रयोग था और प्रशासन ने उनके खिलाफ मामला वापस ले लिया।
कोर्ट में आदेश न मानने का कारण बताया
वहीं उस दौरान तत्कालीन एसडीओ के कोर्ट में बापू ने अपना बयान दिया था और आदेश नहीं मानने का कारण भी बताया था. उसी स्थान पर सत्याग्रह स्मृति स्तम्भ बनाया गया। वर्तमान में इस परिसर में एक गांधी संग्रहालय भी बनाया गया है।
चंपारण आंदोलन समझें
बता दें कि चंपारण किसान आंदोलन बिहार के चंपारण जिले का किसान विद्रोह था. इसकी उत्पत्ति ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान भारत में हुई थी। नील की खेती ने किसानों की कमर तोड़ दी थी। इसकी खेती करना उनकी मजबूरी थी. खेती के लिए किसानों पर दबाव डाला जा रहा था. इसकी खेती न करने पर उन्हें पीटा भी जाता था. चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी. इस आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के सामने झुकना पड़ा। चंपारण सत्याग्रह के कारण सैकड़ों वर्ष पुरानी यह प्रथा समाप्त हो गई।