पटना। पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बयान पर बवाल मचा हुआ है। वीरवार को अश्विनी चौबे ने बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा बयान दिया है। अपने बयान में उन्होंने कहा है कि बीजेपी आगे आने वाले चुनावो में यदि भाजपा अकेले चुनाव लड़ती है तो वह आसानी से जीत सकती है। अश्विनी चौबे […]
पटना। पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बयान पर बवाल मचा हुआ है। वीरवार को अश्विनी चौबे ने बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा बयान दिया है। अपने बयान में उन्होंने कहा है कि बीजेपी आगे आने वाले चुनावो में यदि भाजपा अकेले चुनाव लड़ती है तो वह आसानी से जीत सकती है। अश्विनी चौबे ने यह बयान ऐसे समय पर दिया है जब इस बात की चर्चा जोरों-शोरों पर है कि बिहार में समय से पूर्व चुनाव कराया जाएगा।
भागलपुर में आयोजित कार्यक्रम के बाद अश्विनी चौबे का कहना है कि मेरी इच्छा है कि विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए का चेहरा न घोषित किया जाए। भाजपा बड़ी पार्टी बनकर चुनाव लड़े। भाजपा पहले अपने दम पर चुनाव लड़े और बाद में अपने सहयोगियों को साथ लेकर चलें। चौबे के इस बयान पर जेडीयू ने पलटवार किया है। जेडीयू महासचिव संजय झा का कहना है कि बिहार में एनडीए का मतलब नीतीश कुमार है। चौबे के इस बयान से अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या सच में आगे आने वाले चुनावों में भाजपा जेडीयू से अलग होकर चुनाव लड़ेगी और सरकार बना पाएगी। देखा जाए तो पिछले 20 सालों में बिहार की राजनीति के सेंटर नीतीश कुमार हैं।
सन् 2005 विधानसभा के चुनावों में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू को 88 और भाजपा को 55 पर जीत मिली। 2010 में जेडीयू को 115 और भाजपा को 91 सीटे मिली थी। वहीं 2015 की बात की जाए तो जेडीयू राजद के साथ चुनाव में उतरी थी। जेडीयू को 71, आरजेडी को 80 और कांग्रेस को 27 सीटे जीतने में कामयाब रही। वहीं बीजेपी सिर्फ 53 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई। यहां तक अश्विनी चौबे के गढ़ भागलपुर में बीजेपी सभी 7 सीटें हार गई। अश्विनी चौबे के बेटे अजित सत्यार्थी को भागलपुर सदर सीट से हारे थे।