पटना। सावन के तीसरा सोमवार का व्रत 5 अगस्त यानी आज के दिन रखा जाएगा। सावन में आने वाले सभी सोमवार बेहद खास माने जाते है। शिव जी सृष्टि के तीनों गुणों को नियंत्रित करते हैं। शिव जी त्रिनेत्रधारी है। साथ ही शिव जी की उपासना भी मूल रूप से तीन स्वरूपों में ही की जाती है। तीनों स्वरूपों की उपासना के लिए सावन का तीसरा सोमवार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इस तीनों स्वरूपों की उपासना करके सावन के तीसरे सोमवार को मनोकामनाओं की पूर्ति की जा सकती है।
नीलकंठ स्वरूप
शिवजी के इन स्वरूपों की उपासना अगर प्रदोष काल में करें तो शुभ माना जाता है। समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला तो शिव जी ने मानवता की रक्षा के लिए उस विष को पी लिया था। उन्होंने विष को अपने कंठ में ही रोक लिया , जिससे उनका कंठ नीला हो गया। नीला कंठ होने के कारण महाकाल के इस स्वरूप को नीलकंठ कहा जाता है।
नटराज स्वरूप
इस स्वरूप की उपासना करने से शत्रु बाधा, षडयंत्र और तंत्र मंत्र जैसी चीजों का असर नहीं होता। शिव ने ही दुनिया में समस्त नृत्य संगीत और कला का आविष्कार किया है।नृत्य कला के तमाम भेद भी शिव ने अपने शिष्यों को बताई है। भगवान नटराज को नृत्य के देवता के स्वरूप में पूजा जाता है, जो भगवान शिव के ही एक प्रतीक हैं।
मृत्यजंय स्वरूप
जिनकी उपासना से मृत्यु को भी तक को जीता जा सकता है, वह है शिव का स्वरूप – मृत्युंजय। शिव जी का यह स्वरूप अमृत का कलश लेकर भक्त की रक्षा करते हैं। भगवान शिव के मृत्युंजय स्वरूप की उपासना से अकाल मृत्यु से रक्षा, आयु रक्षा, स्वास्थ्य लाभ मिलता है। मृत्यजंय उपासना से सभी मनोकामना पूर्ति होती है। सावन के सोमवार को भगवान शिव के मृत्युंजय स्वरूप की पूजा-अर्चना करने के लिए शिव लिंग पर बेल पत्र और फूल चढ़ाए जाते है। साथ ही जलधारा अर्पित की जाती है।