पटना। शारदीय नवरात्रि के बाद नवविवाहिताओं के लिए कोजागरा का पर्व उतना ही महत्व रखता है, जितना करवा चौथ। कोजागरा लोकपर्व आज बिहार समेत पूरे उत्तर भारत में उत्साह से मनाया जा रहा है। कोजागरा की रात चांद की दूधिया रोशनी पृथ्वी पर पड़ती है, जिससे पृथ्वी की खूबसूरती और निखर जाती है। विवाह के […]
पटना। शारदीय नवरात्रि के बाद नवविवाहिताओं के लिए कोजागरा का पर्व उतना ही महत्व रखता है, जितना करवा चौथ। कोजागरा लोकपर्व आज बिहार समेत पूरे उत्तर भारत में उत्साह से मनाया जा रहा है। कोजागरा की रात चांद की दूधिया रोशनी पृथ्वी पर पड़ती है, जिससे पृथ्वी की खूबसूरती और निखर जाती है।
शास्त्रों के मुताबिक आश्विन पूर्णिमा की रात जगत की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी जब वैकुंठ धाम से पृथ्वी पर आती है कि उनके भक्त उनके आने की खुशी में जागरण कर रहे हैं या नहीं इसी कारण रात्रि जागरण को कोजागरा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन पूर्णिमा की रात चांद से अमृत बरसाता है। जो रात भर जागता है वहीं अमृत भी पाता है। उसके घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। खास तौर पर नव विवाहित व्यक्ति अपने विवाह के पहले साल में इस समृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं।
इस दिन वर अपने बड़े बुजुर्ग से आशिवार्द लेते हैं, जिसे मिथिला में चुमाउन कहा जाता है। ऐसा करने पर दंपती का दाम्पत्य जीवन सुखद बना रहता है। इसी कामना को लेकर यह लोकपर्व हर्षों-उल्लास के साथ मनाया जाता है। कोजागरा जिसे बंगाल में लखि पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मुख्य रूप से लक्ष्मी के विभिन्न स्वरुपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। कमल के पन्ने जिसे पुरैन कहते हैं, उसपर कौमुदी के बीज भेंट का चावल और मखाने का खीर मां अन्नपूर्णा को भोग लगाई जाती है।
कोजागरा के दिन धन से अधिक अन्न को महत्व दिया जाता है। लोग सोना और चांदी के सिक्के की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, लेकिन मुख्य रूप से दौलत का मतलब अन्न की समृद्धि से है न कि धन की समृद्धि से। ऐसा माना जाता है कि कोजागरा की रात अमृत वर्षा होती है, ऐसे में लोग आंगन या छत पर दही को पूरी रात रखते हैं और सुबह उसे अमृत मानकर खाते हैं।