पटना: देश-दुनिया में कल यानी 25 दिसंबर को क्रिसमस बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। क्रिसमस ईसाइयों का प्रमुख और सबसे बड़ा त्योहार है। ईसाई धर्म के लोग क्रिसमस को प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। हालांकि, हिंदू धर्म और इस्लाम सहित अन्य धर्मों के कैलेंडर में 25 दिसंबर की तारीख […]
पटना: देश-दुनिया में कल यानी 25 दिसंबर को क्रिसमस बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। क्रिसमस ईसाइयों का प्रमुख और सबसे बड़ा त्योहार है। ईसाई धर्म के लोग क्रिसमस को प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। हालांकि, हिंदू धर्म और इस्लाम सहित अन्य धर्मों के कैलेंडर में 25 दिसंबर की तारीख को पवित्र नहीं माना जाता है। मुसलमानों में भले ही 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने की परंपरा न हो, लेकिन मुसलमान ईसा मसीह का बहुत सम्मान करते हैं।
इस्लाम की पवित्र किताब कुरान में भी ईसा मसीह और उनकी मां मरियम का जिक्र है। मुस्लिम धर्म में कहा जाता है कि ईसा मसीह ईसाइयों के पैगंबर थे. इस्लाम में ईसा मसीह को ईसाइयों के पैगंबर के रूप में देखा जाता है। जबकि कुरान में मैरी का जिक्र मरियम के तौर पर किया गया है. कुरान में ईसा मसीह और मरियम पर एक पूरा अध्याय है। इस पूरे अध्याय में ईसा मसीह के जन्म का भी जिक्र किया गया है.
ईसा मसीह के जन्म की पूरी कहानी कुरान की सूरह मरियम (19:24-25) में मिलती है। दरअसल, कुरान में ईसा मसीह के जन्म की कहानी में कहीं भी जोसेफ और फरिश्तों का जिक्र नहीं है। कुरान के अनुसार मरियम ने रेगिस्तान में अकेले ही ईसा मसीह को जन्म दिया था। मुसलमानों के क्रिसमस न मनाने को लेकर इस्लाम के लोग कहते हैं कि मेरी क्रिसमस कहने वाले का मानना है कि अल्लाह का एक ही बेटा है. इसीलिए इस्लाम में क्रिसमस नहीं मनाया जाता.
जहां एक ओर कुरान में ईसा मसीह का जिक्र है, वहीं दूसरी ओर ईसाइयों की पवित्र पुस्तक बाइबिल में इस्लाम शब्द का कही कोई जिक्र नहीं है। इतना ही नहीं, बेल्जियम के एक चर्च में 17वीं सदी की एक मूर्ति में इस्लाम के पैगंबर को स्वर्गीय फरिश्तों के पैरों के नीचे दबे हुए दिखाया गया है। हालाँकि, ईसाई धर्म में अभी ऐसी सोच के लिए कोई जगह नहीं है। भले ही लोग क्रिसमस नहीं मनाते हैं, लेकिन वे ईसाइयों को उनके त्योहार की बधाई देते हैं। मौका मिलने पर लोग क्रिसमस पार्टियों में भी शामिल होते हैं।