पटना। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के मद्देनजर बिहार में पहले चरण के तहत 40 में से 4 लोकसभा सीटों पर वोटिंग जारी है। आज बिहार की चार लोकसभा सीटों औरंगाबाद, जमुई, नवादा और गया में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच का कार्यक्रम चल रहा है। ऐसे में लोग लंबी कतारों में लग कर […]
पटना। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के मद्देनजर बिहार में पहले चरण के तहत 40 में से 4 लोकसभा सीटों पर वोटिंग जारी है। आज बिहार की चार लोकसभा सीटों औरंगाबाद, जमुई, नवादा और गया में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच का कार्यक्रम चल रहा है। ऐसे में लोग लंबी कतारों में लग कर अपने मताधिकार का उपयोग कर रहे हैं। दरअसल, यह दुनिया के लिए हमेशा से आश्चर्य का विषय रहा है कि आखिर इतनी बड़ी जनसंख्या की चुनावी प्रक्रिया इतने सुव्यवस्थित रूप से कैसे संपन्न होती है।
दरअसल, भारत के इलेक्टोरल प्रोसेस के कई ऐसे बिंदु ऐसे हैं जो बेहद खास हैं। ऐसी ही एक खासियत है NOTA वोट (नोटा वोट) यानी ‘ उपरोक्त में से कोई नहीं’ (None Of The Above) का विकल्प। बता दें कि भारत के चुनावों में प्रत्याशियों के चुनाव के दौरान मतदाताओं को उनके विकल्प के अलावा एक नोटा बटन का भी विकल्प मिलता है।
बता दें कि नोटा को अस्वीकृत करने का अधिकार भी कहते हैं। ये वाकई खास बात है कि भारत में मतदाताओं को ये अधिकार भी दिया गया है। नोटा के विकल्प का अर्थ है कि अगर किसी मतदाता को लगता है कि उसकी सीट पर जितने भी कैंडिडेट्स चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें से कोई भी योग्य नहीं है, तो वो मतदाता वोट देने का यह विकल्प चुन सकता है। यह एक तरह का विरोध का अधिकार भी है, जो वोटर नोटा का बटन दबाकर बताता है कि कोई मौजूदा उम्मीदवार वोट के काबिल ही नहीं है। इसका इस्तेमाल किसी उम्मीदवार की हार तय नहीं करता। बल्कि, इसका इस्तेमाल सिर्फ उम्मीदवारों को नकारने के लिए करते हैं।
नोटा का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और बैलेट पेपर, दोनों ही तरह के मतदान में किया जाता है। नोटा से किसी प्रत्याशी की हार तय नहीं होती, बकायदा इस वोट की गिनती होती है और इसे कत्तई अमान्य वोट नहीं माना जाता। वैसे तो अब तक भारत में कभी भी ऐसा नहीं हुआ या न ही ऐसी कोई संभावना बनी है कि किसी सीट पर हुए चुनाव में नोटा वोटों की संख्या किसी भी कैंडिडेट को मिले वोटों से ज्यादा हो। पर अगर ऐसी स्थिति बनती है तो नोटा के बाद जिस कैंडिडेट को सबसे अधिक वोट मिले होंगे, उन्हें विजेता बनाया जाता है।
गौरतलब है कि पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) Vs. भारत सरकार के एक केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2013 में एक फैसला सुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग को ये निर्देश दिया कि देश के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में नोटा का विकल्प ले आएं। जिसके बाद 2013 में पहली बार छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में पहली बार इस विक्लप का उपयोग किया गया।