छोटे उम्र में पिता को खो देना, किताब उधार लेकर पढ़ना और नदी पार कर स्कूल पहुंचना कुछ इस तरह थी शास्त्री जी की जीवन…

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लखनऊ: आज 2 अक्टूबर को पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ-साथ देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मना रहा है। शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय जिला में एक मामूली शिक्षक मुंशी शारदा प्रसाद के घर में हुआ था।

बचपन में ही पिता जी चल बसे

आपको बता दें कि जब शास्त्री जी छोटे थे तो उनके पिता की मृत्यु के कारण सारी जिम्मेदारी मां रामदुलारी पर आ गई। कुछ दिन मायके में रहने के बाद रामदुलारी अपने बेटे लाल बहादुर के साथ अपने पैतृक घर रामनगर चली गई।

किताब उधार लेकर करते थे पढ़ाई

वहीं अत्यधिक गरीबी में शास्त्री जी की जिंदगी गुजरी। बता दें कि उनकी मां ने किसी तरह कर्ज लेकर शास्त्री जी को पढ़ाया लिखाया। इतना ही नहीं शास्त्री जी के पास उस समय इतना पैसा नहीं था, जिससे वो किताबें खरीद कर पढ़ सके। इस दौरान वो अपने सहपाठियों से किताबें उधार लेकर वाराणसी हरिश्चंद्र कॉलेज में पढ़ने के लिए प्रतिदिन गंगा पार करते थे। आइए जानते हैं शास्त्री से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें-

नदी में तैरते हुए पहुंचते थे स्कूल

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त कार्यवाहक एवं शोधकर्ता सुनील कुमार राय ने बताया कि शास्त्री जी को काशी से बहुत लगाव था। बचपन में जब शास्त्री जी पढ़ाई के लिए अपने पैतृक घर रामनगर से निकलते थे तो प्रतिदिन गंगा नदी तैरकर पार करते थे। माथे पर बैग और कपड़ा बांधकर शास्त्री जी कई किलोमीटर लंबी गंगा नदी को आसानी से पार कर पढ़ाई करने पहुंचते थे। स्कूल में मेधावी होने के कारण उन्हें उस दौरान बचपन में तीन रुपये वजीफा मिलता था।

थप्पड़ मारने वाले लोग बन गए प्यारे

देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी शास्त्री जी उस व्यक्ति को नहीं भूले जिसने उन्हें थप्पड़ मारा था। शास्त्री जी बचपन से ही मेधावी छात्र थे। स्वभाव से चंचल शास्त्री जी स्कूल में अक्सर कुछ न कुछ तोड़ देते थे। ऐसे में हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान उन्होंने प्रायोगिक वस्तु को तोड़ दिया था। इस दौरान स्कूल के चपरासी देवीलाल ने उन्हें ऐसा करते हुए देख लिया और इस काम के लिए चपरासी ने शास्त्री जी को जोरदार थप्पड़ मारा और लैब से बाहर निकाल दिया।

भरी मंच पर चपरासी को बुलाकर लगाया गले

इस घटना को लेकर कॉलेज के प्राचार्य पीके सिंह ने बताया कि रेल मंत्री बनने के बाद 1954 में शास्त्री जी एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे, तब वह मंच पर बैठे हुए थे. तभी देवीलाल की नजर उनके ऊपर पड़ी और वह वहां से निकलने लगा लेकिन शास्त्री जी ने देवीलाल को पहचान लिया और उन्हें मंच पर बुलाया और गले लगा लिया.