पटना: गरुड़ पुराण में जीवन के बाद होने वाली सभी घटनाओं को विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में यह भी विस्तार से बताया गया है कि किस तरह आत्मा को यमलोक में अदालती कार्यवाही से गुजरना पड़ता है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि यमलोक की अदालत कैसी होती है और वहां आत्माओं […]
पटना: गरुड़ पुराण में जीवन के बाद होने वाली सभी घटनाओं को विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में यह भी विस्तार से बताया गया है कि किस तरह आत्मा को यमलोक में अदालती कार्यवाही से गुजरना पड़ता है। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि यमलोक की अदालत कैसी होती है और वहां आत्माओं को किस तरह से सजा दी जाती है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, यमराज की आज्ञा के बिना देवता भी यमराज के दरबार में प्रवेश नहीं कर सकते। यमराज की सेवा करने वाले लोगों को यमदूत कहा जाता है। दरबार के द्वार की रक्षा करने वाले दूतों को धर्म ध्वज के नाम से जाना जाता है। यमलोक में चार द्वार हैं। इन चार द्वारों को उत्तरी द्वार, दक्षिणी द्वार, पश्चिमी द्वार और पूर्वी द्वार के नाम से जाना जाता है।
गरुड़ पुराण में लिखा गया है कि पूरब के दरवाजे की तरफ से ऋषि-मुनि,योगी और सिद्ध पुरुषों की आत्मा की एंट्री होती है। इसे स्वर्ग का द्वार भी बोला जाता है। जो भी आत्माएं इस दरवाजे से यमलोक के अंदर प्रवेश करती है उसका स्वागत अप्सरा करती है। वहीं पश्चिमी दरवाजे से ऐसी आत्मा को एंट्री मिलती है जिसने अपने जीवन में धर्म की रक्षा की हो, दान-पुण्य किया हो अथवा जिसकी मृत्यु किसी तीर्थ स्थल पर हुई हो।
दक्षिणी दरवाजे से यमराज की न्यायालय में वैसी आत्माओं को प्रवेश होता है जो अपने जीवन में पाप ही पाप किया हो। इसलिए दक्षिणी दरवाजे को नरक का प्रवेश द्वार भी बोला गया है। जबकि उत्तरी द्वार से वैसी आत्माओं की एंट्री होती है जो अपने संपूर्ण जीवन में माता-पिता की खूब सेवा की हो, सदैव सत्य के साथ खड़ा रहा हो और जिसने कभी भी किसी पर कोई हिंसा न की हो।
वहीं जो आत्माएं पूर्वी द्वार से यमलोक में प्रवेश करती हैं, उन्हें यमराज के दरबार में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होती। उन्हें सीधे स्वर्ग भेजा जाता है। जबकि अन्य तीन द्वारों से यमलोक में प्रवेश करने वाली आत्माओं को यमराज के दरबार में उपस्थित होना पड़ता है। इस दौरान यमराज दरबार में अपने सिंहासन पर बैठते हैं। आत्मा को दूतों द्वारा लाया जाता है और यमराज के सामने कटघरे में खड़ा किया जाता है।
उसके बाद चित्रगुप्त जी महाराज एक वकील की तरह यमराज को उस आत्मा के कर्मों का लेखा-जोखा बताते हैं। फिर यमराज उसके अच्छे और बुरे कर्मों की तुलना करते हैं। यदि पुण्य की मात्रा अधिक है तो उस आत्मा को सुख भोगने के लिए स्वर्ग भेजा जाता है और जब पुण्य की मात्रा समाप्त हो जाती है तो आत्मा को पाप की मात्रा के बराबर नरक का कष्ट भोगना पड़ता है।
दूसरी ओर, जिस आत्मा ने अधिक पाप किए होते हैं, उसे पहले नरक की पीड़ा भोगनी पड़ती है, उसके बाद उसे सुख भोगने के लिए स्वर्ग भेजा जाता है। कुछ आत्माएं ऐसी होती हैं जो जीवित रहते हुए बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध करती हैं, मृत्यु के बाद उन्हें तामिस्र नामक नरक में लाखों वर्षों तक कष्ट भोगना पड़ता है।