पटना। बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपनी विरासत और संस्कृति (Culture Of Bihar) के लिए जाना जाता है। बिहार राज्य भोजपुरी, मैथिली, मगही, तिरहुत तथा अंग संस्कृति का मिश्रण है। यहां महापर्व छठ सहित अन्य क्षेत्रीय पर्वों को काफी विधि-विधान और धूम-धाम से मनाया जाता है। यहां के खान-पान से लेकर शादी विवाह तक सभी में बिहारी संस्कृति की चमक झलकती है। बिहार की संस्कृति (Culture of Bihar) विविधताओं से भरी हुई है। ऐसे में आइए जानते हैं बिहार के पांच महापर्वों के बारे में।
लोक आस्था का महापर्व छठ
दरअसल, 4 दिवसीय महापर्व छठ, बिहार का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व बिना किसी भेदभाव के मनाया जाता है। इस दिन छठव्रती भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। यह पूरे चार दिनों तक चलता है। इस त्योहार में छठव्रतियों को पवित्र स्नान, निर्जला उपवास रखने के साथ-साथ पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना होता है।
मिथिलांचल में मधुश्रावणी पूजा
वहीं बिहार में मिथिलांचल की परंपरा से जुड़ी मधुश्रावणी पूजा का अपना विशेष महत्व होता है। बता दें कि विवाह के बाद पहले सावन में ये पूजा होती है। जो 13 दिनों तक चलती है। पूजा शुरू होने से पहले दिन नाग-नागिन व उनके पांच बच्चे (बिसहारा) को मिट्टी से गढ़ा जाता है। इसके साथ ही हल्दी से गौरी बनाने की परंपरा भी है। इस पूजा के दौरान, 13 दिनों तक नवविवाहिताएं हर सुबह फूल और शाम में पत्ते तोड़ने जाती हैं। इन दिनों में सुहागिनें फूल-पत्ते तोड़ते समय और कथा सुनते वक्त एक ही साड़ी हर दिन पहनती हैं। इस पूजा के लिए नवविवाहिताओं के लिए उनके ससुराल से श्रृंगार पेटी दी जाती है जिसमें साड़ी, लहठी सिन्दूर, धान का लावा और जाही-जूही (फूल-पत्ती) शामिल होता है।
बिहुला
पूर्वी बिहार मे बिहुला एक प्रमुख त्योहार माना जाता है। विशेषकर भागलपुर जिले में इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान लोग अपने परिवार के कल्याण के लिए देवी मनसा से प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि सती बिहुला ने अपने मृत पति के लिए कड़ी तपस्या की थी, जिसके बाद मां मनसा देवी द्रवित हो गईं और उन्होंने बिहुला के पति को जिंदा कर दिया। उसी वक्त से बिहुला का नाम अमर हो गया।
सोनपुर मेला
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा में बिहार के सोनपुर में सोनपुर मेला आयोजित किया जाता है। सोनपुर मेला में एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। साथ ही इसे ‘हरिहर क्षेत्र मेला’ के नाम से भी जानते हैं। जबकि स्थानीय लोग इसे छत्तर मेला कहते हैं। सोनपुर मेला कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद शुरू हो जाता है। लोग गंगा स्नान के बाद हरिहर नाथ मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करते हैं और फिर मेला का आनंद लेते हैं। इस मेले की खासियत यह है कि इसमें कई प्रकार की चीजें मिलती हैं। यहां लोगों के मनोरंजन की पूरी व्यवस्था की जाती है।
धान रोपाई
आप सोच रहे होंगे की धान रोपाई त्योहार कैसे हो सकता है। बता दें कि बिहार में धान की रोपाई भी एक पर्व के तरह मनाई जाती है। बिहार में लोग अपने खेतों में गीत गाते हुए धान की रोपाई करते हैं। ये समय अद्रा कहलाता है। इस दिन सभी घरों में खीर-पूड़ी और कई अन्य तरह के पकवान बनाए जाते हैं। इस दौरान घर की औरतें, पुरूषों के साथ मिलकर पूरे विधि-विधान के साथ धान की रोपाई करती हैं।