बिहार: आज से शुरु हो रहा है पितृपक्ष, गया धाम में पिंडदान के दौरान बरतें ये सावधानियां

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Pitru Paksha 2023
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पटना। बिहार के गया जी धाम में 15 दिनों की अवधि के दौरान देश-विदेश से लाखों तीर्थयात्री पिंडदान करने पहुंचते हैं। पितृपक्ष अवधि में अनेक नियमों और धर्मों का पालन करने के लिए बताया गया है। जानिए पूरी जानकारी।

आज से शुरु हो रहा है पितृपक्ष

गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 28 सितंबर से शुरू हो चुका है। यह मेला 14 अक्टूबर तक चलेगा। बता दें कि आज शुक्रवार से पितृपक्ष की शुरुआत हो गई है। इस दौरान देश-विदेश से लाखों की संख्या में हिंदू सनातन धर्मावलंबी गया जी पहुंचते हैं। यह कहा जाता है कि ये मान्यता है कि पितरों को जल और तिल से पितृपक्ष में तर्पण किया जाता है। यहीं नहीं पितृपक्ष अवधि में गया जी धाम में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया सर्वोत्तम तीर्थ है। वहीं, मत्स्य पुराण में गया को पितृतीर्थ भी कहा गया है। इसी कारण गया जी धाम में 15 दिनों की अवधि में देश-विदेश से लाखों तीर्थयात्री पिंडदान, तर्पण और कर्मकांडो को पूरा करने के लिए आते हैं।

क्या है श्राद्ध

बता दें कि गया के विष्णुपद मंदिर स्थित वैदिक मंत्रालय के पंडित राजा आचार्य ने बताया कि भारतीय हिंदुत्व और सनातन में अपने पूर्वज पितरों को समर्पित भाव से जो कार्य किया जाता है वही श्राद्ध होता है। जीवित अवस्था में पितृ अपने बच्चों का अच्छे से पालन-पोषण करते हैं। घर, भोजन आदि सहित जीवन कैसे जीना है? यह माता पिता ही सिखाते हैं। इसके साथ ही वह पूर्वज मृत्यु के बाद यह कामना करते हैं कि हमारी संतान हमारे मृत्यु के बाद हमारे उद्धार के लिए श्राद्ध करे और श्रद्धा से होने वाला पिंडदान ही श्राद्ध होता है। बताया जाता है कि जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर जाता है और पहले कृष्णपक्ष को महालया पक्ष यानी पितृपक्ष होता है इस अवधि में श्रद्धा से किए गए श्राद्ध से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति और उद्धार मिलता है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और अपनी संतान को सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार साधू व संतों और बच्चों का पिंडदान नहीं किया जाता है।

पितृपक्ष के दौरान इन नियमों का करें पालन

बताया जाता है कि पितृपक्ष अवधि में अनेक नियमों और धर्म का पालन किया जाता है। इस दौरान पिंडदानी को दूसरे के घर का भोजन नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलें, कपट न करें, पितृपक्ष में एक समय ही भोजन करें, इसके अलावा रात्रि भोजन का त्याग दें, वहीं अगर आप यात्रा में हों तो अपने भगवान और पितरों का ध्यान करें, किसी के साथ अपशब्द नहीं बोलें, ब्रह्मचर्य का पालन करें, गरीबों को भोजन कराएं, पशु-पक्षियों को भोजन दें, पितरों को तिल तर्पण करें, शुद्ध सात्विक अवस्था में रहें, 15 दिनों तक नित्य पितरों का ध्यान करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। भागवत या रामायण जी का पाठ अगर नहीं कर सकते हैं तो किसी ब्राह्मण से पाठ कराकर सुनना जरूरी होता है। पितृपक्ष की पूरी अवधि में इन नियमों का पालन करते हुए जीवन को सफल बनाया जा सकता है।

इन सामग्रियों से करें पिंडदान

पितृ पक्ष के दौरान गया में पिंडदान करने से पितर तृप्त होते हैं और इसी के साथ ही वो संतान को आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं। इसीलिए श्राद्ध करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है। श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए। उड़द, सफेद पुष्प, केले, गाय के दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ने आदि का इस्तेमाल करते हैं तो इससे श्राद्ध में पितर प्रसन्न होते हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है।

इन बातों का विशेष ध्यान

पिंडदान के समय कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है जैसे जब भी मृत व्यक्ति के घरवाले मृतक का पिंडदान करें तो सबसे पहले चावल या फिर जौ के आटे में दूध और तिल को मिलाकर उस आटे को गूथ लें। इसके बाद उसका गोला बना लें। वहीं जब भी आप तर्पण करने जाएं तो ध्यान रखें कि आप पीतल के बर्तन या फिर पीतल की थाली ही लें और उसमें एकदम साफ जल भरें। इसके बाद उसमें दूध व काला तिल डालकर अपने सामने रख लें और अपने सामने एक खाली बर्तन भी रखें। अब अपने दोनों हाथों को मिला लें। इसके बाद मृत व्यक्ति का नाम लेकर तृप्यन्ताम बोलते हुए अंजुली में भरे हुए जल को सामने रखे खाली बर्तन में डाल दें। इसके अलावा जल से तर्पण करते समय आप उसमें जौ, कुशा, काला तिल और सफेद फूल अवश्य मिला लें। ऐसा करने से पितर तृप्त हो जाते हैं। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें।