पटना। देश भर में लोकआस्था के महापर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान की शुरुआत हो चुकी है। जहां एक तरफ इस पर्व का पौराणिक महत्व है वहीं, यह पर्व स्वच्छता, सादगी और पवित्रता का भी सूचक है। इन सब से बढ़ कर जो बात सामने आती है वो ये कि इस अनुष्ठान या पर्व में […]
पटना। देश भर में लोकआस्था के महापर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान की शुरुआत हो चुकी है। जहां एक तरफ इस पर्व का पौराणिक महत्व है वहीं, यह पर्व स्वच्छता, सादगी और पवित्रता का भी सूचक है। इन सब से बढ़ कर जो बात सामने आती है वो ये कि इस अनुष्ठान या पर्व में कोई मजहब आड़े नहीं आता। शायद इसी लिए कहा जाता है कि यह पर्व साम्प्रदायिक सौहार्द की पाठ भी पढ़ाता है। बता दें कि बिहार में कई ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां मुस्लिम महिलाएं और पुरुष इस छठ पर्व को पूरे सनातन पद्धति और रीति-रिवाज से मनाते हैं।
दरअसल, बात हो रही है गोपालगंज और वैशाली जिले के कई गांवों के मुस्लिम घरों में छठ के गीत गूंजने की। यही नहीं यहां छठ पर्व में उपयोग होने वाले मिट्टी के चूल्हे, धागा और अरता पात भी अधिकांश इलाकों में मुस्लिम परिवार की महिलाएं ही बनाती हैं। बता दें कि गोपालगंज जिले के संग्रामपुर गांव में मुस्लिम समुदायक की 8 महिलाएं 20 वर्षों से छठी मैया का व्रत कर रही हैं। इस साल भी यह सूर्योपासना के इस महापर्व छठ व्रत की शुरुआत नहाय खाय के साथ कर चुकी है। अब आज यह खरना कि भी तैयारी कर रही हैं। रविवार (19 नवंबर) को अस्ताचलगामी और सोमवार (20 नवंबर) को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। यहां गौर करने वाली बात यह है कि इन महिलाओं कि न केवल छठ व्रत को लेकर आस्था है बल्कि इन्हें इसपर पूरा विश्वास भी है।
वहीं संग्रामपुर गांव की रहने वाली शबनम खातून, संतरा खातून, नूरजहां खातून का यह मानना है कि उनके घर छठी मईया की कृपा हुई उसके बाद ही घर में बच्चों की किलकारियां सुनाई दी। यही नहीं आज भी उनका विश्वास छठी मईया पर बना है। उनका मानना है कि वे पूरी शुद्धता और रीति रिवाज और नियमों के साथ इस छठ पर्व को मनाती हैं। इतना ही नहीं उनके घर के पुरुष सदस्य भी इसमें अपना पूरा सहयोग देते हैं।
दूसरी तरफ वैशाली जिले के लालगंज और सराय थाना क्षेत्रों में भी कई मुस्लिम महिलाएं और पुरुष हर साल छठ की पूजा करते हैं। इन मुस्लिम परिवारोंं के लोगों का कहना है कि इस पर्व के बीच मजहब कभी आड़े नहीं आता। इस बीच ये लोग अन्य हिन्दू लोगों के साथ ही पर्व की तैयारी करती हैं और एक ही घाट पर भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया है।