आरा: बिहार के एक थाने से मंगलवार को 28 मार्च को भगवान हनुमान की रिहाई हुई है. पिछले 29 सालों से भगवान हनुमान को इस थाने में रखा गया था. हनुमान की रिहाई के बाद भक्तों और ग्रामीणों में खुशी की लहर है. बता दें कि आरा सिविल कोर्ड के बाद भगवान हनुमान और उनके साथ रखे श्री रामानुज स्वामी की मंगलवार को रिहाई हुई है. आरा सिविल कोर्ट के एडीजे श्री सत्येंद्र सिंह के आदेश के बाद भगवान हनुमान की रिहाई की गई है.
भगवान ने ली ताने से विदाई
थाने में विराजमान हनुमान जी को निकालने से पहले उन्हें और रामानुज स्वामी को गंगाजल से स्नान कराया गया. इसके बाद दोनों ने नए वस्त्र धारण किए. नए वस्त्र धारण करने के बाद भगवान की पूजा अर्चना की गई. मौके पर मौजूद ग्रामीणों के साथ पुलिस वालों ने भी प्रभु हनुमान और श्री रामानुज स्वामी की पूजा अर्चना की. पूजा अर्चना के बाद भगवान ने थाने से विदाई ली.
पूजा पाठ हुआ
थाने से विदाई लेने के बाद प्रभु गाजे-बाजे और जयकारे के साथ दोनों मूर्तियों को आरा के गुंडी गांव स्थित श्री रंगनाथ मंदिर लाया गया. मंदिर लाने से पहले भगवान हनुमान और रामानुज स्वामी की पूजा की गई और उनपर फूल माला चढ़ाया गया.
गांव भर में घुमाई गईं मूर्तियां
थाने से मूर्ती लाने के बाद से पूरे गांव में मूर्ती घुमाई गई. इस दौरान पूरे गांव में जश्न का माहौल था. गांव की महिलाओं ने भगवान की दर्शन की. इस दौरान गांव के एक 80 साल के बुजुर्ग बबन सिंह ने बताया कि उन्हें अपनी आखों पर विश्वास नहीं हो रहा है कि उनके भगवान फिर से मंदिर में आ चुके हैं. इससे पहले उन्होंने 29 साल पहले भगवान को मंदिर के प्रांगण में देखा था. पूरे गांव में इसको लेकर देर रात तक हूजूम का माहौल रहा.
क्या है पूरा मामला
इस मामले की शुरुआत साल 1994 में हुई थी, जब कृष्णगथ थाना क्षेत्र के गुंडी गांव से भगवान की मूर्तियों को चुरा लिया गया था. उस वक्त करीब एक हफ्ते के अंदर मूर्तियों को बरामद कर लिया गया था. पुलिस को यह मूर्तियां गौसगंज के पास एक बगीचे से मिली थीं. इसके बाद जब मूर्तियों की जमानत के लिए न्यायालय की ओर से 45 लाख रुपए बतौर जमानत राशि मांगी गई थी. तब जमानत राशि के वजह से मूर्तियां मालखाने में पड़ी थीं.
दक्षिण के तर्ज पर है मंदिर
बता दें कि इस मंदिर का निर्माण कार्य साल 1840 ई. मद्रास के नंद गुनेठी मठ के मठाधीश की अगुवाई में खत्म हुआ था. दंक्षिण भारत के मंदिर के तर्ज पर ही इस मंदिर की वास्तु को रखा गया था. इस मंदिर में कई भगवान की मूर्तियों को स्थापित किया गया था. लेकिन बाद में मठ की ओर से मंदिर की पूजा पाठ में कोताही बरतने के कारण मंदिर के देखरेख की जिम्मेदारी वर्ष 2007 में भगवान श्रीराम जी को सौंप दी गई थी.