पटना: सनातन धर्म में सभी त्योहार को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। इसी प्रकार श्री राधा रानी को समर्पित राधा अष्टमी के व्रत का अलग महत्व है। यह त्योहार जन्माष्टमी के बाद मनाया जाता है। इस अवसर पर भक्त उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस नियम का पालन करने से किशोरी जी […]
पटना: सनातन धर्म में सभी त्योहार को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। इसी प्रकार श्री राधा रानी को समर्पित राधा अष्टमी के व्रत का अलग महत्व है। यह त्योहार जन्माष्टमी के बाद मनाया जाता है। इस अवसर पर भक्त उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस नियम का पालन करने से किशोरी जी प्रसन्न होती हैं। राधा अष्टमी को श्री राधा रानी का जन्म हुआ था, इस वजह से इस दिन को अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। तो राधा अष्टमी का व्रत रखने से पहले जान लें पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त।
पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 सितंबर को रात 11 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, यह तिथि 11 सितंबर को रात 11 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में तिथि की गणना सूर्योदय से की जाती है। ऐसे में राधा अष्टमी 11 सितंबर को मनाई जाएगी। इस दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है।
राधा अष्टमी पर राधा रानी की पूजा सुबह 11:03 बजे से लेकर दोपहर 01:32 बजे तक कर सकते हैं।
राधा अष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर देवी-देवताओं का ध्यान करके दिन की शुरुआत करें। नित्यकर्म से निवृत्त होकर गंगाजल से स्नान करें। फिर पूजा का संकल्प लें।
घर और मंदिर की विशेष सफाई करें। चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और राधा कृष्ण की मूर्ति रखें. व्रत का संकल्प लें साथ ही उनका श्रृंगार करें. देसी घी का दीपक जलाकर आरती करें और मंत्रों का जाप करें।
इसके बाद राधा कृष्ण से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति के लिए प्रार्थना करें। इस दौरान दिन भर व्रत रखें। संध्याकाल में आरती कर फलाहार करें। इसके बाद अगले दिन पूजा-अर्चना करने के बाद व्रत का पारण करें।
व्रत के दिन तामसिक भोजन करने से परहेज करें।
अपने से बड़े और बुजुर्गों का अपमान भूल कर भी न करें।
किसी के लिए अपने अंदर गलत विचार धारण न होने दें।
घर में गंदगी न फैलाएं।
व्रत के दौरान दिन में भूलकर भी नींद न लें।