पटना : आज 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के 25 वर्ष पूरे हो गए है। हर साल पूरा देश इस दिन को जवानों की शहादत को याद करते हुए विजय दिवस मनाता है। 83 दिनों तक यह युद्ध चला था। इस युद्ध में बिहार के वीर सपूतों ने भी अपनी जान की बलिदानी देकर दुश्मनों को मार गिराया था। साल1999 में 3 मई से कारगिल की युद्ध शुरू हुए जिसका समापन 26 जुलाई को भारत विजय के साथ हुआ था। इस युद्ध में 530 भारत के जवान शहीद हुए थे. 1300 से ऊपर जवान घायल हुए। वहीं कारगिल में बिहार के मुजफ्फरपुर के दो जवानों ने भी अपनी बलिदानी दी थी।
बिहार के 16 जवान और अधिकारी हुए थे शहीद
बता दें कि दो माह से ऊपर चले कारगिल युद्ध में मुजफ्फरपुर के करजा थाने के फंदा निवासी नायक सुनील सिंह व कुढ़नी प्रखंड के माधोपुर सुस्ता निवासी सिपाही प्रमोद कुमार समेत बिहार के 16 वीर जवान और सेना अधिकारी शहीद हुए थे। देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले इन वीर सपूतों के परिजनों और देशवाशियों को उनकी बलिदानी पर गर्व है। लेकिन शाहदत तो भारत माता की रक्षा के लिए हुई, वहीं आज भी उस मुश्किल तीन माह की घरी को याद किया जाता है तो सबकी आंखे नम हो जाती है। इस दौरान शहीद के परिजनों का कहना है कि आज भी भारतीय सेना उन्हें पूरे शहादत के साथ सम्मान देती है। साथ ही यूनिट से हमेशा फोन आते रहते है हमेशा उनकी हाल-चाल भी लेते रहते हैं, जिससे शहीद के परिवार वालों को हिम्मत मिलती रहती है।
कुढ़नी का लाल भी शहीद
इसके साथ शहीद प्रमोद के भाई का कहना है कि 26 मई 1999 को प्रमोद का फोन आया की कारगिल में स्थिति बहुत गम्भीरपूर्ण बनी हुई है लगता है अब युद्ध होकर ही रहेगा। उन्होंने आगे बताया कि मेजर के साथ सर्च अभियान के लिए चार्ली बटालियन आगे बढ़ रही है। इसके बाद प्रमोद का फोन कट गया, जिसके बाद उनसे हमारी कोई बात नहीं हुई। 30 मई शाम को ख़बर मिली कि कारगिल में भीषण गोलीबारी के दौरान सात भारत के जवान अपनी बलिदानी दे दिए हैं, जिसमें मेजर सर्वानंद का नाम भी शामिल है। कुछ ही समय बाद ख़बर आई कि उन शहीदों में प्रमोद भी शामिल है। बता दें कि शहीद प्रमोद के भाई ऐसा कहते हुए काफी भावुक हो उठें। इस दौरन वो भावुक होते हुए आगे कहते हैं कि उन्हें अपने भाई को खोने का गम तो बहुत है लेकिन उससे भी अधिक भाई भारत माता की रक्षा के लिए कारगिल विजय दिवस में उन्होंने अपने प्राण न्योछावर किये जिससे जिलावासियों के लिए अधिक गौरव की बात है।
1988 में ज्वाइन किये थे सेना
बता दें कि मड़वन के फंदा गांव के सुनील कुमार भी साल 1988 में सेना के 5 पैरा रेजीमेंट ज्वाइन किए थे। उन्होंने साल 1989 में शांति सेना और 1994-95 में ऑपरेशन विजय में अदम्य साहस का परचम लहराया था । 23 जुलाई 1999 को सियाचिन की ग्लेशियर में दुश्मनों से भिड़ंत में उन्होंने अपनी जान की बलिदानी देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वहीं शहीद सुनील की पत्नी मीना कुमारी कहती हैं कि आज भी वो दिन याद करते है, तो कलेजा दहल उठता है। उस दौरान आगरा में उनकी यूनिट थी। वो (शहीद सुनील) अक्टूबर 1998 में गए थे, जिसके बाद उनकी डेड बॉडी ही गांव फंदा आया।
26 जुलाई को गांव फंदा में दी गई अंतिम विदाई
वह यानी शहीद सुनील की पत्नी आगे बताती है कि 25 जुलाई को चक्कर मैदान स्थित आर्मी यूनिट से करजा थाने के माध्यम से शहादत की ख़बर हमलोगों को मिली थी। 26 जुलाई को गांव फंदा में उनकी पार्थिव शरीर को लाया गया था। भारतीय सैनिकों की सलामी के साथ उन्हें नम आंखों से अंतिम विदाई दी गई थी। मीना कुमारी मौजूदा समय में सरकारी सेवा में कार्यरत है। शहीद सुनील की 3 बेटियां है जिनमें से 2 की शादी हो चुकी है। वहीं 1 बेटी अभी पढ़ाई कर रही है। वो आगे बताती है कि उनका एक इकलौता बेटा स्नातक करके पेट्रोल पंप का संचालन करता है। मालूम हो कि 5 पैरा रेजीमेंट के शहीद सुनील शांति सेना और ऑपरेशन विजय का भी हिस्सा बने थे।