Friday, September 27, 2024

कौन थे कर्पूरी ठाकुर जिन्हें मिलेगा भारत रत्न? जानें बिहार के पूर्व सीएम की पूरी कहानी

पटना। बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जाएगा। कर्पूरी ठाकुर की पहचान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षक के रूप में रही है। वह बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था।

कौन थे कर्पूरी ठाकुर?

कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाला नेता माना जाता है उन्होंने पिछड़े वर्ग के लिए अनेको काम किये। कर्पूरी ठाकुर साधारण नाई परिवार में जन्मे थे। कहा जाता है कि पूरी जिंदगी उन्होंने कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना सियासी मुकाम हासिल किया। यहां तक कि इमरजेंसी के दौरान तमाम कोशिशों के बाद भी इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा सकी थीं।

1970 और 1977 में सीएम बने थे कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के सीएम बने थे। 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी। उनका पहला कार्यकाल महज 163 दिन का रहा था। 1977 की जनता लहर में जनता पार्टी को भारी जीत मिली तब भी कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के सीएम बने। अपना यह कार्यकाल भी वह पूरा नहीं कर सके। इसके बाद भी महज 2 साल से भी कम समय के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया। बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त कर दी। वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में पिछड़ों, अति पिछड़ों और गरीबों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिस कारण बिहार की सियासत में आमूलचूल बदलाव आ गया। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन कर उभरे।

कर्पूरी ठाकुर के चेले हैं नीतीश-लालू

बिहार में समाजवाद की राजनीति कर रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं। जनता पार्टी के दौर में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे। ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हक में कई काम किए।

बिहार की राजनीति में अहम हैं कर्पूरी ठाकुर

चुनावी विश्लेषकों की मानें तो कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था, लेकिन इतने साल बाद भी वो बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। गौरतलब है कि बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की आबादी करीब 52 फीसदी है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी पकड़ बनाने के मकसद से कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं। यही कारण है कि 2020 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ‘कर्पूरी ठाकुर सुविधा केंद्र’ खोलने का ऐलान किया था।

श्रद्धांजलि अर्पित की

बिहार के पूर्व सीएम व पिछड़ों के मसीहा कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर की आज 100वीं जयंती हैं। इस अवसर पर पीएम मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ, तेजस्वी यादव समेत अन्य सियासी दिग्गजों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है।

पीएम मोदी ने लिखा लेख

कर्पूरी ठाकुर के जयंती के इस मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्पूरी ठाकुर की याद में एक लेख लिखा है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस लेख में कर्पूरी ठाकुर की सादगी का जिक्र किया है। साथ ही, पीएम नरेंद्र मोदी ने यह भी बताया है कि उन्हें कर्पूरी ठाकुर से मिलने का मौका तो कभी नहीं मिला लेकिन कैलाशपति मिश्र से उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के बारे में खूब किस्से सुने हैं। पीएम मोदी ने अपने लेख में लिखा है, ‘हमारे जीवन पर कई लोगों के व्यक्तित्व का प्रभाव रहता है. जिन लोगों से हम संपर्क में हैं, हम जिनसे मिलते हैं, उनकी बातों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है लेकिन कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जिनके बारे में सुनकर ही आप उनसे प्रभावित हो जाते हैं। मेरे लिए ऐसे ही रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर। आज कर्पूरी बाबू की 100वीं जन्म-जयंती है। मुझे कर्पूरी जी से कभी मिलने का अवसर तो नहीं मिला लेकिन उनके साथ बेहद करीब से काम करने वाले कैलाशपति मिश्र जी से मैंने उनके बारे में बहुत कुछ सुना है। सामाजिक न्याय के लिए कर्पूरी बाबू ने जो प्रयास किए, उससे करोड़ों लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव आया। उनका संबंध नाई समाज, यानि समाज के अति पिछड़े वर्ग से था। अनेक चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने उपलब्धियों को हासिल की और जीवनभर समाज के उत्थान के लिए काम करते रहे।

Ad Image
Latest news
Ad Image
Related news