Saturday, September 28, 2024

Uttarkashi Tunnel Rescue: दीपक और सबाह पहुंचे घर, लोगों ने योद्धा की तरह किया स्वागत

पटना। उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को 17 दिनों के बाद सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है। अब मेडिकल टेस्ट के बाद सभी मजदूर अपने-अपने घर वापस लौट रहे हैं। इस बीच ये कामगार अपने साथ जिंदगी में कभी न भूलने वाली यादें लेकर लौटे हैं। जहां उनके गांव-घर के लोग योद्धा की तरह उनका स्वागत कर रहे हैं। इसी क्रम में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के दीपक भी अपने गांव पहुंचे। दीपक की मां ने बेटे को देखते ही उसे गले से लगा लिया।

सबाह के स्वागत में जुटा पूरा गांव

17 दिनों तक टनल में फंसे रहने के बाद, भोजपुर के पेउर गांव के सबाह अहमद शुक्रवार की सुबह अपने घर पहुंचे। यहां के लोग उनके स्वागत में लग गए। यही नहीं घर के आधा किलोमीटर दूर से ही सहार-सकड्डी मार्ग पर लोग फूल-माला लेकर सबाह के स्वागत में खड़े थे। जैसे ही गाड़ी घर के पास पहुंची, लोगों ने फूलों की मालाओं से उन्हें लाद दिया। सबाह जब अपने पिता मो.मिस्बाह अहमद से गले मिले तो दोनों भावुक हो गए। इस दौरान सबाह का स्वागत के लिए उनके चाचा मो.मुख्तार अहमद, पूर्व मुखिया अफजाल अहमद, अंजार अहमद, कोरनडिहरी पंचायत के मुखिया रामसुबक सिंह, पेरहाप के मुखिया महेन्द्र प्रताप, जिला परिषद सदस्य मीना कुमारी, समरेश सिंह, सहार मुखिया बसंत कुमार आदि उपस्थित रहे। बता दें कि सबाह टनल निर्माण कंपनी में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत हैं।

दीपक को देख भावुक हुआ परिवार

इसके अलावा उत्तरकाशी के टनल में फंसे दीपक कुमार भी अपने घर मुजफ्फरपुर जिले के जैतपुर ओपी क्षेत्र के गिजास पहुंचे। यहां तो गांव वालों ने उनका किसी योद्धा की तरह स्वागत किया। इस दौरान दीपक की मां उन्हें देखकर भावुक हो गई और उन्हें गले से लगा लिया। यही नहीं दीपक के पिता भी खुशी से भावुक नजर आए।

सबाह ने बताया हाल

उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल में 17 दिन फंसे रहने के बाद बाहर आए सबाह अहमद ने बताया कि 12 नवंबर की सुबह निर्माण कार्य के दौरान टनल हादसे में 41 श्रमिक के साथ वे भी फंस गए थे। 17 दिन चले बचाव अभियान के बाद सभी श्रमिकों को सुरंग से सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। सबाह ने बताया कि बिहार सरकार ने टनल में फंसे बिहार के सभी कामगारों के दिल्ली से घर तक आने के लिए टिकट की व्यवस्था की। इस दौरान सभी लोग सुबह की फ्लाइट से पटना पहुंचे और वहां से घर तक पहुंचाने के लिए चार पहिया वाहन की व्यवस्था भी की गई।

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